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नहीं रहीं लोकगायिका शारदा सिन्हा, 72 की उम्र में दिल्ली के एम्स में निधन अब दुनिया से अलविदा

नहीं रहीं लोकगायिका शारदा सिन्हा, 72 की उम्र में दिल्ली के एम्स में निधन अब दुनिया से अलविदा

“शारदा सिन्हा की मखमली आवाज़ को ‘खनक’ देने वाले हृदय नारायण झा के गीत, जिन्होंने छठ गीतों को दिलों तक पहुंचाया”

♦️ भारत टाइम्स न्यूज ♦️
शीतल निर्भीक/रितु वर्मा डिजिटल एडिटर
नई दिल्ली। देश के मशहूर भोजपुरी लोकगायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया है. दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. सिंगर के चाहनेवालों को इस खबर से बड़ा झटका लगा है. शारदा सिन्हा की तस्वीर शेयर करते हुए उनके निधन की खबर की पुष्टि बेटे अंशुमन सिन्हा ने कर दी है।

छठ महापर्व का नाम सुनते ही जो आवाज़ हमारे कानों में सबसे पहले गूंजती है, वह है पद्म भूषण शारदा सिन्हा की। उनकी आवाज़ में खनक और मिठास का जादू हर साल छठ के गीतों में फिर से जीवंत हो उठता है। परंतु क्या आप जानते हैं कि इन मधुर गीतों के पीछे छुपे गीतकार का नाम है – हृदय नारायण झा, जिनकी लेखनी ने शारदा सिन्हा की आवाज़ को और भी खनकदार बना दिया है?

छठ महापर्व के दौरान हृदय नारायण झा के लिखे गीतों का जादू ऐसा छा जाता है कि हर छठ व्रती उनके गीतों से खुद को जोड़ लेता है। इस साल शारदा सिन्हा का नया छठ गीत ‘दुखवा मिटाई छठी मैया, रउए असरा हमार’ भी खासा लोकप्रिय हो रहा है, जिसके बोल झा ने खुद लिखे हैं और हर शब्द में लोक आस्था की झलक है। शारदा सिन्हा के मुताबिक, इन गीतों में न सिर्फ एक लोक आस्था का पर्व दिखता है, बल्कि उसमें उस विशेष भावना की भी खनक सुनाई देती है, जो हृदय नारायण झा जैसे रचनाकार अपनी कलम से उकेरते हैं।

लोक आस्था का जादू
हृदय नारायण झा की लेखनी का यह असर है कि उनके गीतों ने लोक गीतों को सिर्फ बिहार या उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने लगभग 20 साल पहले भोजपुरी में अपना पहला छठ गीत लिखा था, जिसका बोल था ‘महिमा बा राउर अपार छठी मैया’। उस गीत ने जितनी लोकप्रियता पाई, वह उनकी रचनात्मकता और भोजपुरी साहित्य के प्रति उनके लगाव का प्रमाण है।

साहित्य और संगीत में योगदान
हृदय नारायण झा ने भोजपुरी और मैथिली साहित्य में अपनी अमूल्य योगदान दिया है। उनके गीत और कविताएं ग्रामीण जीवन, समाज और मानवता को खूबसूरती से दर्शाती हैं। इस क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। झा का मानना है कि हिंदी से अधिक छठ गीतों के भाव और संजीदगी को भोजपुरी और मैथिली जैसी लोक भाषाएं बेहतर तरीके से व्यक्त कर पाती हैं।

शारदा सिन्हा की ‘खास’ गायन शैली
शारदा सिन्हा का कहना है कि हृदय नारायण झा के गीतों में न केवल बोलों की मिठास होती है, बल्कि उनमें उस अनमोल विरासत की झलक मिलती है जो छठ महापर्व के आस्था को और भी सजीव कर देती है। उनके गीतों में छठ व्रतियों की आकांक्षाएं और श्रद्धा की भावना बखूबी झलकती है, जो हर सुनने वाले को एक पल में छठ के पर्व से जोड़ देती है।

महत्वपूर्ण रचनाएं और सम्मान

हृदय नारायण झा ने न केवल छठ गीत बल्कि कई भोजपुरी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे हैं जो ग्रामीण जीवन और संस्कृति को दर्शाते हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध गीत ‘गोरी तोरी चूड़ीया’, ‘नदिया के पार’, और ‘पिया मिलन’ हैं, जो शारदा सिन्हा की आवाज़ में बेहद लोकप्रिय हुए हैं। इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और भोजपुरी संगीत में उत्कृष्टता के लिए कई पुरस्कार मिले हैं।

भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

हृदय नारायण झा की रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर हैं। उन्होंने भोजपुरी साहित्य को केवल लोकप्रिय नहीं बनाया, बल्कि इसे समाज के प्रति जिम्मेदारी का माध्यम भी बनाया। उनके द्वारा लिखे गीत आज भी छठ के त्योहार पर अनिवार्य रूप से गाए जाते हैं, जो उनके योगदान की उत्कृष्टता को दर्शाता है।

छठ महापर्व पर हृदय नारायण झा के गीतों और शारदा सिन्हा की आवाज़ का संगम एक बार फिर से भक्तों के

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