//दीपों का पर्व//
अहम का मुखौटा उतार दीजिए।
स्नेहिल दीपों को कतार दीजिए।।
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कि इस जीवन यात्रा में मंथरा आए कई..
भाई भरत– लक्ष्मण सा व्यवहार कीजिए।।
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साहित्य और समाज की दृढ़ नींव धर….
रस छंद अलंकारों से पूर्ण त्यौहार कीजिए।।
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देहरी सुनी न रह जाए कहीं केवट संग शबरी की,
ईर्ष्या– द्वेष से परे,खुशियों का हार दीजिए ।।
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अपने अंतर्मन में, व्याप्त तम का विग्रह कर…
सूर्य– चंद्र से तनिक,निर्झर मनुहार कीजिए।।
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पल प्रतिपल ही मनाते चलें दीपों का पर्व “शशि”
कि मीठी वाणी से जगमग सकल संसार कीजिए।।
© शशि चंदन “निर्झर”