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मन का गुलाम ना बने – युगप्रधान आचार्य महाश्रमण

🌸 *मन का गुलाम ना बने – युगप्रधान आचार्य महाश्रमण*🌸

*- मंगल भावना में श्रावक समाज की भावाभिव्यक्ति*

*- चातुर्मास संपन्नता पर 16 नवम्बर को संयम विहार से होगा मंगल विहार*

*12.11.2024, मंगलवार, वेसू, सूरत (गुजरात)*

अहिंसा यात्रा प्रणेता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का सूरत चातुर्मास अपने आप में ऐतिहासिक एवं चिरस्मरणीय सिद्ध हो रहा है। गुरूदेव की सन्निधि में धर्माराधना का नवोन्मेष सूरत वासियों के लिए एक स्वर्णिम अवसर लेकर आया। ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप रूपी चतुष्क मोक्ष मार्ग की आराधना में श्रावक श्राविका समाज ने बढ़चढकर भाग लिया एवं अपने आध्यात्मिक जीवन का पथ प्रशस्त किया। ज्यों ज्यों चातुर्मास संपन्नता पर विहार का समय नजदीक आ रहा है हर श्रद्धालु इन पलों का पूरा लाभ उठाने के लिए समुत्सुक है। दिनांक 16 नवंबर को प्रातः 08:40 पर आचार्य श्री का भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के संयम विहार चातुर्मास प्रांगण से विहार निर्धारित है जहां से आचार्य श्री पांडेसरा पधारेंगे। इसके पश्चात भेस्तान, उधना, सिटीलाइट, पर्वत पाटिया, अड़ाजन आदि क्षेत्रों में पदार्पण भी निर्धारित है। मंगल भावना की इन घड़ियों में हर श्रद्धालु अपने आराध्य के प्रति भक्तिभाव प्रस्तुत करने के लिए उत्साहित है।

आज के कार्यक्रम में गुरूदेव के दर्शन करने पांडेसरा से समागत स्थानकवासी संघ से साध्वी मनीषाश्री जी, साध्वी पुर्वाश्री जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

मंगल धर्म देशना में आचार्य प्रवर ने फरमाया – आदमी के मन में दुख से मुक्त रहने की भावना होती है। कोई भी कष्ट की कामना नहीं करता। व्यक्ति समस्या से मुक्त रहने का चिंतन करता है। दुख दो प्रकार के कहे जा सकते है एक बुढ़ापा अर्थात् शारीरिक कष्ट तथा दूसरा शोक जिसमें मानसिक दुख आ जाता है। कभी मन में कष्टानुभूति, प्रिय का वियोग, व्यापारिक हानि आदि के कारण मानसिक दुख हो जाते है। व्यक्ति सर्व दुखों से मुक्त रहना चाहता है किन्तु वह कैसे संभव है ? भगवान ने दुख मुक्ति का मार्ग बताते हुए कहा है कि अपनी आत्मा अभिनिग्रह, संयम करने से दुखों से मुक्ति संभव है। अनुकूलताएं आए तो ज्यादा राग, खुशी नहीं मनाना वहीं प्रतिकूलताएं दुख आ जाएं तो ज्यादा दुख नहीं मनाना। जब भीतर में समता की चेतना जाग जाती है तो दुख से मुक्ति संभव है।

कथा के माध्यम से प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आगे कहा कि हमारा चित्त चंचल प्रकृति का होता है। जैसे पंखे की ताड़ियां घूमती है, चंचल है पर इसे चंचल कौन बना रहा है ? वैसे ही मन चंचल है उसे चंचल बनाने वाले हमारे कषाय है। राग द्वेष के भाव मन को चंचल बनाते है। मन को राग द्वेष मुक्त कर लिया जाए तो चंचलता भी मिट जाती है। हम अपने मन को वश में करने का प्रयास करे। जो मन का गुलाम है वह दुखों के मार्ग पर है वहीं मन जिसका गुलाम है वह दुख मुक्ति के मार्ग पर है। हम मन के गुलाम ना बने।

मंगल भावना के क्रम में प्रकाश जी डाकलिया, वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनिल जी चंडालिया, सहमंत्री जितेंद्र जी तलेसरा, संगठन मंत्री प्रकाश जी छाजेड़, दीपका सुतरिया, मैनेजिंग ट्रस्टी बाबूलाल जी भोगर, आवास व्यवस्था से नरपत जी कोचर, महासभा उपाध्यक्ष फूलचंद जी चक्रवत, नानालाल जी शाह, उपासक मोहन लाल जी संकलेचा, भाविका महेश्वरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

टापरा निवासी, सूरत प्रवासी, वंदना जिनेश संकलेचा ने 21 की तपस्या का गुरुदेव से प्रत्याख्यान किया।

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