🌸 *महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पहुंचे आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत* 🌸
-मानव जीवन में रहे अहिंसा का प्रभाव : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
*17.10.2024, गुरुवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :*
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देने वाले, करोड़ों लोगों को नशामुक्ति का संकल्प कराने वाले तथा जनकल्याण के लिए लगभग 58 हजार किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत उपस्थित हुए। प्रत्येक वर्ष आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित होने वाले सरसंघचालक महोदय प्रवचन से कुछ समय पूर्व ही गुरुदेव के पास पहुंच गए। उन्होंने आचार्यश्री के प्रवास कक्ष में पहुंचकर उन्हें वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। जहां श्री भागवतजी व आचार्यश्री के बीच वार्तालाप का क्रम भी रहा। कुछ समय पश्चात आचार्यश्री के साथ वे मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में संभागी बनने हेतु महावीर समवसरण में भी पहुंचे।
इतना ही नहीं, सायं साढे तीन बजे के आसपास श्री मोहन भागवतजी पुनः चतुर्मास प्रवास स्थल में पधारे जहां आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में भगवान महावीर युनिवर्सिटि द्वारा पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में ‘हरित’ कार्यक्रम के अंतर्गत ‘वाइस चांसलर कॉनक्लेव’ का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से काफी संख्या में वाइस चांसलर उपस्थित रहे।
महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे इन आगमों के माध्यम से अतिन्द्रिय विषयक बातें भी प्राप्त होती हैं और विभिन्न विषयों का वर्णन भी यहां प्राप्त होता है। धर्म से जुड़े हुए शास्त्र हैं तो अहिंसा की बात बहुत ही अच्छी मात्रा में प्राप्त हो जाती है। यहां एक अहिंसा का सूत्र दिया गया है कि प्राणी जगत की समस्त आत्माएं समान होती हैं। इसे जानकर समूचे जीव जगत की हिंसा से दूर हो जाने का प्रयास करना चाहिए। प्रत्येक आत्मा के असंख्य अवयव होते हैं। आत्मा का फैलाव हो तो समूचे जगत में एक ही आत्मा व्याप्त हो जाए और संकुचित हो तो अति सूक्ष्म जीव में भी समाहित हो जाती है। दूसरी बात है कि सभी प्राणियों को सुख प्रिय होता है, दुःख कोई प्राणी नहीं चाहता। सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता, इसलिए सभी को जीने का अधिकार होना चाहिए। यह अहिंसा का विशेष उपदेश दिया गया है। शरीरधारी प्राणी के चाहे अथवा अनचाहे रूप में हिंसा हो सकती है। मनुष्य को ही देखें तो मनुष्य अपने शरीर को टिकाए रखने के लिए भोजन, पानी व हवा की आवश्यकता होती है। भोजन करने में ईंधन का प्रयोग होता है तो वहां हिंसा हो सकती है, पीने के लिए पानी का उपयोग करते हैं तो वहां भी हिंसा की बात हो सकती है।
जीव हिंसा से पूर्णतया बचकर जी पाना असंभव-सा है तो बताया गया कि जो साधु होते हैं, वे सर्वप्राणातिपात से मुक्त होते हैं तो न तो वे स्वयं के लिए भोजन बनाना है और न ही दूसरों से बनवाना है तो भिक्षाचरी के जिसे गोचरी भी कहा जाता है, उसके माध्यम से अपने शरीर को चलाता है। मानव जीवन के हर क्षेत्र में अहिंसा का प्रभाव रहे। जीवन चाहे पारिवारिक हो, सामाजिक हो हर जगह अहिंसा के संस्कार रहें।
आचार्यश्री ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनजी भागवत का प्रायः हर वर्ष आगमन होता है, आज भी आगमन हुआ है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। जो मनीषी व्यक्ति होते हैं, जिनकी भाषा में माधुर्य और विशिष्ट होते हैं तो वह मार्गदर्शन देने वाले हो सकते हैं।
आचार्यश्री की मंगल प्रेरणा के उपरान्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्यश्री ने कहा कि सभी प्राणी सुख चाहते हैं और उसी दिशा में भागते हैं। उस दिशा में खूब प्रयास करने के बाद भी उसे सुख की प्राप्ति नहीं हुई, सुख-दुःख तो अपने भीतर होता है। कामनाओं के अनुसार उपभोग करने से वह और ज्यादा बढ़ती है। इसीलिए जीवन में संघर्ष है, जिसकी लाठी उसकी भैंस ऐसे दुनिया पिछले दो हजार वर्ष चली है। सुख अपने अंदर है, उसके लिए आदमी को अनुशासित होना चाहिए। तेरापंथ के आद्य आचार्यश्री भिक्षु की तीन सौवीं जयंती मनेगी और आचार्यश्री ने कहा कि उन्होंने अनुशासन से ही इसका आरम्भ किया था। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, आचौर्य, ब्रह्मचर्य का पालन करेगा तो वह सुखी रह सकेगा। आचार्यश्री की वाणी को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा व स्वागताध्यक्ष श्री संजय जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
सायंकाल चतुर्मास परिसर में बने कॉन्फ्रेंस हॉल में साढे तीन बजे से भगवान महावीर युनिवर्सिटि द्वारा पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में ‘हरित’ कार्यक्रम के अंतर्गत ‘वाइस चांसलर कॉनक्लेव’ का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से काफी संख्या में वाइस चांसलर उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारम्भ आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि केन्द्र-रायपुर के राष्ट्रीय सह संयोजक श्री राकेश जैन ने आज के विषय पर अपनी अभिव्यक्ति दी।
तदुपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित वाइस चांसलरजन आदि को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे यहां पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, वनस्पति आदि सभी को जीव माना गया है। इसलिए इन सभी तत्त्वों के प्रयोग में संयम और अहिंसा की चेतना हो तो पर्यावरण की समस्या से बचा जा सकता है। शिक्षा विभाग की इतनी विभूतियों का एक साथ मिलना विशिष्ट बात है। शिक्षा से जुड़े हुए लोग विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कार के प्रति भी जागरूक करें। उनके मानसिक और भावात्मक विकास के लिए योग, ध्यान का भी अभ्यास हो, अहिंसा और संयम की चेतना का विकास हो तो पर्यावरण और समाज की सुरक्षा हो सकती है।
आरएसएस सरसंघचालक श्री मोहन भागवतजी ने भी अपने संबोधन में कहा कि दुनिया में पर्यावरण पर बात तो बहुत हो रही है, उसके लिए कुछ करने लायक बातों को आगे बढ़ाने का प्रयास हो। मनुष्य को विज्ञान नामक हथियार मिलने बाद वह अपनी कामनाओं के वशीभूत होकर मर्यादा का लंघन कर स्वयं को दुनिया का मालिक मान बैठा था, लेकिन आज विज्ञान भी मानने लगा है कि कोई ऐसी शक्ति है जो सृष्टि का संचालन कर रही है। प्रकृति के साथ चलने के बात बहुत पहले शंकराचार्यजी ने बताई थी। हमारे ऋषि, महर्षि ने इतनी सुन्दर व्यवस्था बनाई थी, उस ओर हमें पुनः धीरे-धीरे तर्कसंगत रूप में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आप सभी गुरुजन यहां उपस्थित हैं तो बच्चों को उन पुरातन तथ्यों से अवगत कराएं और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलने के लिए प्रेरित करें।
बीकानेर टेक्निकल युनिवर्सिटि के संस्थापक व वाइस चांसलर प्रोफेसर एचडी चारण ने इस कॉन्क्लेव में हुए विभिन्न विचारों आदि के विषय की जानकारी दी। इसके उपरान्त उपस्थित वाइस चांसलरों और आरएसएस प्रमुख के मध्य जिज्ञासा-समाधान का भी क्रम चला। इस कार्यक्रम का संचालन ऋषि युनिवर्सिटि के वाइस चासंलर श्री शोभित माथुर ने किया।