शीर्षक :- फाग
विधा :- मनहरण घनाक्षरी
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(१)
गोकुल मची है धूम
होलियार रहे घूम
मस्ती में मलंग होके
ढपली बजाते हैं।
पिचकारी हाथ लिए
प्रीत रंग बसे हिये
मुख से आवाज करें
स्वांग ये बनाते हैं।
गली – गली सराबोर
हुडदंग पुरजोर
शिव के गणों की जैसे
बरात सजाते हैं।
भेदभाव सारे त्याग
एक होय खेलें फाग
गोकुल में एकता का
रस बरसाते हैं।।
(२)
फाग की उमंग लिए
पिया की तरंग हिये
गुजरिया झूम चली
पायल बजाती है।
नैना रहे सकुचाय
कमरिया बल खाय
ठुमक – ठुमक चले
बाण ये चलाती है।
बिजुरिया चमके है
घटा घोर कड़के है
ऐसे में कोयल जैसे
गीत ये सुनाती है।
पायल की छम छम
बादलों की रिमझिम
प्रीत रंग रंगे गोरी
लाज में लजाती है।।
(३)
बजती है चंग यहाँ
घुटती है भंग वहाँ
भंग की तरंग में ही
फाग खेल आते हैं।
उड़ता गुलाल भाल
सबके रसाल लाल
रंग और भंग का तो
मेल मिला पाते है।
मारी ऐसी पिचकारी
भीग गई गोरी सारी
भेदभाव भूलें एक
रंग, रंग जाते हैं।
कहती हूँ हाथ जोड़
खेलो फाग ऐंठ छोड़
किसी का न दिल तोड़
प्रीत को सजाते हैं।।
*(स्वरचित मौलिक अप्रकाशित)*
नाम :- सुनीता चौधरी
व्यवसाय प्रधानाचार्य (शिक्षा विभाग)