जामुड़िया::नील की खेती के विरुद्ध डकैतों ने किया था डकैत काली मंदिर की स्थापना बीहड़ जंगल में स्थित है डकैत काली मंदिर चटर्जी एवं बनर्जी परिवार करते हैं पूजा
जामुड़िया :: भारतीय संस्कृति एवं धर्म को लेकर देश का एक अपना इतिहास रहा है ।ऐसे भी बंगाल को देव नहीं बल्कि देवी का भूमि के नाम से माना जाता रहा है बंगाल को आज से नहीं बल्कि आदि युग से देवी प्रधान भूमि माना जाता रहा है । मॉं भगवती, माँ काली,माँ जगद्धात्री, माँ लक्ष्मी सहित माता मनसा की पूजा का इतिहास बंगाल से ही जुड़ा हुआ है । कुछ ऐसी ही कहानी जामुड़िया के औधोगिक क्षेत्र इकड़ा से जुड़ा हुआ है । इकडा क्षेत्र में नीलबन जंगल के डकैत काली मंदिर का इतिहास सायद सभी लोगों की नजर में नहीं है इसलिए सन्मार्ग की टीम आपके लिए जामुड़िया की ऐतिहासिक नीलबन जंगल में स्थित डकैत काली मंदिर की कहानी आपके लिए लाई है । लगभग आज से 2 सौ साल पहले अंग्रेज भारतीयों पर अत्याचार करके नील की खेती कराते थे उस समय अंग्रेजों से त्रस्त होकर समाज के कुछ युवकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध इसके खिलाफ बिगुल फूंक दिया था । नीलबन में नील की खेती होने के कारण नीलबन पूरी तरह से बंजर भूमि में बदल गया था । उसी समय में कुछ युवक ने नीलबन में माँ काली मंदिर का स्थापना कर दिया था । जिसे डकैतों का काली मंदिर कहा जाता था । उस जगह पर अंग्रेजी अधिकारी भय से नहीं जाते थे । देश को जब आजादी मिली तो अंग्रेज भी चले गए और डकैतों ने भी नीलबन जंगल को छोड़ दिया था । और वहां पूजा करने वाले लोग भी गायब हो गए थे । माँ काली का मंदिर भी ध्वनावशेष में चला गया । आज से 31 वर्ष पहले माँ काली ने चटर्जी परिवार के गगन चटर्जी को रात में सपना दिया था कि नीलबन जंगल में उनका मंदिर बिना पूजा अर्चना के टूटी फूटी अवस्था में है ।उसका पूजा अर्चना किया जाना चाहिए और मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाय । पहले तो गगन चटर्जी को तीन दिनों तक रात में नींद नहीं आया अंत में उन्होंने इस घटना की जानकारी अपने परिजनों को दिया कि नीलबन जंगल में माँ काली मंदिर का लेकर स्वप्नादेश हुआ है परिजनों की मदद से मंदिर की खोज किया गया मंदिर के नाम पर सिर्फ दो हंडिया और कुछ ईंट मिले थे । जिसे जमा कर एक बेदी का निर्माण किया गया बेदी में माँ काली की तसवीर लगाई गई जो आज भी लगा हुआ है । आज भी डकैत काली मंदिर में का