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भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय: विश्व शिक्षा का गौरव

भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय: विश्व शिक्षा का गौरव

♦️भारत टाइम्स न्यूज♦️

रितु वर्मा डिजिटल एडिटर 

नई दिल्ली।भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान, शिक्षा और संस्कृति का अद्वितीय केंद्र रहा है। यहां स्थापित प्राचीन विश्वविद्यालयों ने न केवल भारतीय समाज को शिक्षा और संस्कृति से समृद्ध किया, बल्कि दुनिया भर के छात्रों और विद्वानों को भी आकर्षित किया। इन विश्वविद्यालयों में विविध विषयों और विज्ञानों की शिक्षा दी जाती थी, जो शिक्षा के उच्चतम मानकों को परिभाषित करते थे। इस लेख में, हम भारत के कुछ प्रमुख प्राचीन विश्वविद्यालयों की जानकारी साझा कर रहे हैं, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर शिक्षा का अद्वितीय योगदान दिया।

नालंदा विश्वविद्यालय:

बिहार में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी। यह बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जहां 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक अध्ययन और अध्यापन करते थे। यहाँ दर्शन, विज्ञान, और धर्म जैसे विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी।

तक्षशिला विश्वविद्यालय:

तक्षशिला, जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है, भारत का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। इसकी स्थापना 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी। यहाँ चिकित्सा, सैन्य विज्ञान, कानून, और कला जैसी विविध विषयों की शिक्षा दी जाती थी।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय:

बिहार में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय 8वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह भी बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था और यहां के छात्र बौद्ध धर्म और दर्शन के अध्ययन में प्रवीण होते थे।

ओदंतपुरी विश्वविद्यालय:

यह विश्वविद्यालय भी बिहार में स्थित था और 8वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। यह बौद्ध शिक्षा और साहित्य का प्रमुख केंद्र था, जहां सैकड़ों छात्र अध्ययन करते थे।

मिथिला विश्वविद्यालय:

मिथिला, बिहार का यह विश्वविद्यालय न्यायशास्त्र और तंत्र की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ तंत्र और वैदिक ज्ञान का गहन अध्ययन किया जाता था, जो इसे विशेष बनाता था।

वल्लभी विश्वविद्यालय:

गुजरात के वल्लभी में स्थित इस विश्वविद्यालय की स्थापना 6वीं शताब्दी में हुई थी। यहाँ धर्म, कानून और चिकित्सा की शिक्षा दी जाती थी, और यह पश्चिमी भारत का प्रमुख शैक्षिक केंद्र था।

स्रृंगेरी मठ:

कर्नाटक में स्थित स्रृंगेरी मठ अकांचीपुरम विश्वविद्यालय:द्वैत वेदांत का प्रमुख केंद्र था। यहाँ वेदांत और अद्वैत दर्शन की गहरी शिक्षा दी जाती थी।

तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित यह विश्वविद्यालय तमिल साहित्य और दर्शन का प्रमुख केंद्र था। यहाँ के छात्र तमिल भाषा और दर्शन में विशेषज्ञ होते थे।

पुष्पगिरी विश्वविद्यालय:

ओडिशा में स्थित पुष्पगिरी विश्वविद्यालय बौद्ध और जैन शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। यहां पर बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन धर्म की भी शिक्षा दी जाती थी।

उज्जयिनी विश्वविद्यालय:

मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित यह विश्वविद्यालय ज्योतिष, खगोल विज्ञान, और गणित की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ के छात्र गणित और खगोल विज्ञान में अद्वितीय ज्ञान प्राप्त करते थे।

कृष्णापुर विश्वविद्यालय:

पश्चिम बंगाल में स्थित कृष्णापुर विश्वविद्यालय संस्कृत और विभिन्न विज्ञानों की शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था।

 

नेल्लोर विश्वविद्यालय:

आंध्र प्रदेश का नेल्लोर विश्वविद्यालय धर्म और तंत्र की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ के छात्र तंत्र और धर्म की गहन जानकारी प्राप्त करते थे।

सोमपुरा विश्वविद्यालय:

बांग्लादेश में स्थित सोमपुरा विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। यहाँ धर्म और दर्शन के गहन अध्ययन की परंपरा थी।

अमरावती विश्वविद्यालय:

आंध्र प्रदेश का यह विश्वविद्यालय बौद्ध और जैन शिक्षा का केंद्र था। यहाँ दोनों धर्मों की शिक्षाएं दी जाती थीं।

नागरजुनकोंडा विश्वविद्यालय:

आंध्र प्रदेश के इस विश्वविद्यालय में बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जहाँ छात्रों को बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा दी जाती थी।

रत्नागिरी विश्वविद्यालय:

ओडिशा में स्थित रत्नागिरी विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म और तंत्र की शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था।

माल्कापुरम विश्वविद्यालय:

आंध्र प्रदेश के इस विश्वविद्यालय में विभिन्न धर्मों और विज्ञानों की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ छात्रों को विभिन्न धार्मिक और वैज्ञानिक शिक्षाएं दी जाती थीं।

त्रिसूर विश्वविद्यालय:

केरल के इस विश्वविद्यालय में कला, साहित्य, और ज्योतिष की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ के छात्र साहित्य और कला में विशेषज्ञ होते थे।

विजयपुरा विश्वविद्यालय:

कर्नाटक के विजयपुरा में स्थित इस विश्वविद्यालय में धर्म, तंत्र, और ज्योतिष की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ के छात्र तंत्र और ज्योतिष में निपुण होते थे।

भारत के ये प्राचीन विश्वविद्यालय केवल शिक्षा के केंद्र नहीं थे, बल्कि वे विश्व के लिए ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर के अद्वितीय प्रतीक थे। यहाँ के विद्वानों ने शिक्षा को उच्चतम स्तर पर पहुँचाया और ज्ञान को साझा करने की परंपरा को कायम रखा।

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