
**मेरा लक्ष्य**
हां मैं पराजित हुई हूं …
लेकिन लक्ष्य से भटकी नहीं हूं…
….
झंझाओ ने तोड़कर गिरा दिया मुझे लेकिन धरती के गर्भ से…
एक बीज रूप में …
फिर अंकुरित होकर…
पनपना है मुझे ….
ईर्षा द्वेष रूपी बवंडर फिर आएंगे
फिर भी अपने उच्चतम लक्ष्य में
तनिक भी शिथिलता न कर…
निरंतर अग्रसर होकर …
आकाश की ओर…
उन्मुख ….
लक्ष्य सिद्धि तक…
अनवरत चलना है मुझे….
शानू राजरूद्र प्रतिष्ठा