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“कश्मीर की पुण्य धरा”

“कश्मीर की पुण्य धरा”

हिमगिरि के आँचल में बसी,

ज्ञान-ज्योति की पावन धरा।

ऋषि कश्यप की करुणा जहाँ,

शारदा की है मधुर परा।।

 

तप की अग्नि में जलती थी,

चेतना की वह चंद्र कला।

वैष्णवी ममता बहती थी,

तीर्थ बने त्रिकूट चला।।

 

उत्पलदेव की वाणी से,

गूँजे शिवत्व का स्वर जहां।

अभिनवगुप्त के ध्यान से,

जग चमका तन्त्रालोक वहां।।

 

भरतमुनि ने गाया था,

रस की गहरी छाया में।

क्षेमराज ने बाँधी थी,

शिवसूत्रों को काया में।।

 

शारदा पीठ पुकारे अब,

“विद्या का दीप जलाओ रे!”

ज्ञान-विज्ञान के वनों में,

चेतना पुष्प खिलाओ रे।।

 

यह शुभ भूमि उत्तम मिट्टी है,

यह तप का गान सुनाती है।

यह संस्कृति की धारा है,

जो युग-युग से बहती जाती है।।

 

हे कश्मीर! पुण्य धरा!

तेरा नमन करें हम सब आज।

सनातन के शिखर बने रहो,

चिरकाल तक, जय हो ऋषिराज।।

 

@Dr. Raghavendra Mishra

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