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कैसा होगा..?

कैसा होगा..?

जब मिलेगी मंजिल मेरी जाने वो पल कैसा होगा?

आँखें तरस गईं उस क्षण को जाने वो पल कैसा होगा?

 

जितना जाऊँ पास उतनी तू फ़िसल जाती है

मन की आतुरता बहुत तड़पाती है

आगे बढ़ने की हौड़ दिन रात तरसाती है

मन में उठ रही क्रांति को शांति ना मिल पाती है

भावों की नोका मुझे बहा कर कहीं और ले जाती है

जब पहुंचूंगी किनारे पर जाने वो पल कैसा होगा?

 

 

जब मिलेगी मंजिल मेरी जाने वो पल कैसा होगा?

आँखें तरस गईं उस क्षण को जाने वो पल कैसा होगा?

 

 

कभी -कभी दिल की धड़कन बढ़ जाती है

उल्टे सीधे विचारों को संग जब लाती है

मेरी अंतर आत्मा अंदर से त्राहि त्राहि हो जाती है

जिज्ञासा बढ़ जाती है और मंजिल कहीं दूर हो जाती है

मेरी आतुरता अब रुक न पाती है

जब दुनिया जानेगी मेरे नाम को जाने वह कल कैसा होगा ?

 

 

जब मिलेगी मंजिल मेरी जाने वो पल कैसा होगा?

आँखें तरस गईं उस क्षण को जाने वो पल कैसा होगा?

 

वंदना घनश्याला की कलम ✍🏻से

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