
इश्क़ की किताब
इश्क़ की किताब
कभी तन्हा रातों में खुलती है,
कभी तेरी मुस्कान के गलियारों में महकती है।
हर सांस में तेरा एहसास छुपा रहता है,
हर पन्ना तेरे बिना अधूरा सा लगता है।
कुछ हिस्से हैं जो आँसुओं से भीग चुके हैं,
तेरी हँसी की रौशनी अब भी चमकती है।
एक अधूरा किस्सा रह गया था जो कभी,
शायद तू कुछ कहने वाला था पर कहा नहीं।
तेरे लफ़्ज़, मेरी खामोशियों में दर्ज हैं जैसे,
हर सांस जैसे तेरा नाम पढ़ रही है वैसे।
तेरे ख़तों की स्याही अब धुंधली हो चली है,
पर जज़्बात आज भी वैसे ही ताज़ा हैं।
इस किताब में मौसम नहीं बदलते,
बस तेरी यादों की बारिश से मेरे अरमान हैं खिलते।
तेरे आने की आहट अब भी सुनाई देती है,
तेरे जाने की ख़ामोशी अब भी चुभती है।
कुछ पन्ने हैं जिन्हें पलटने की हिम्मत नहीं होती,
कुछ हर रोज़ ख़्वाबों में फिर से लिखे जाते हैं।
जिन लम्हों को हमने साथ जिया,
वो अब हर कहानी का इक किरदार बन गया।
मैंने इस किताब को कभी किसी से छुपाया नहीं,
बस समझने वाला कोई अब तक आया नहीं।
इश्क़ की ये किताब पूरी ना सही,
मगर हर बार तेरे नाम पर ही खत्म हुई।