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“डॉ. आरती वर्मा मुक्ति: साहित्य की धरोहर बनीं इंदौर की लेखनी

7 सम्मानों और 'मैं गांधारी नहीं' से रचा इतिहास!"

♦️भारत टाइम्स♦️
इंदौर। साहित्य के आकाश में इंदौर का नाम चमकाने वाली डॉ. आरती वर्मा मुक्ति ने अपनी कलम से न सिर्फ विचारों की क्रांति छेड़ी, बल्कि सात प्रतिष्ठित सम्मानों का ‘सप्तऋषि’ हासिल कर मध्यप्रदेश को गौरवान्वित किया है। उनकी पहली पुस्तक ‘मैं गांधारी नहीं’ ने स्त्री-विमर्श को नया आयाम दिया, तो आकाशवाणी खंडवा से लेकर गाजीपुर तक उनकी आवाज़ ने शब्दों के जादू से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।

मार्च 2024 में मिला ‘राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’ उनकी साधना का प्रतीक है, तो अप्रैल 2023 में ‘साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान’ (गाजीपुर) ने उन्हें हिंदी पट्टी की सरहदों से जोड़ा। इसी साल अगस्त में ‘भारतीय गौरव सम्मान’ और दिसंबर 2021 में ‘उत्कृष्ट कवयित्री’ का खिताब मिला, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा का सबूत बना। जबलपुर ने ‘लोक संस्कृति अलंकरण’ (2023) से नवाज़ा, तो इंदौर ने अप्रैल 2023 में ‘कृति कुसुम सम्मान’ देकर अपनी बेटी पर नाज़ जताया। सबसे ताज़ा उपलब्धि है ‘डॉ. रामबली मिश्र अकादमी पुरस्कार 2025’ – यह सिलसिला अभी थमा नहीं, बल्कि नए अध्याय लिखने को तैयार है।

डॉ. मुक्ति की पहचान सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं। आकाशवाणी खंडवा के ‘विविधा कार्यक्रम’ में उनके काव्य-पाठ ने रेडियो के पारंपरिक दर्शकों को झकझोरा, तो विभिन्न क्षेत्रीय आयोजनों में मुख्य अतिथि के रूप में उनकी मौजूदगी ने साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया। उनकी वाणी में वह ताकत है, जो सुनने वाले के मन में उतर जाती है – चाहे वह इंदौर का मंच हो या गाजीपुर का सभागार।

‘मैं गांधारी नहीं’ सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि नारी अस्मिता का घोषणापत्र है। इस रचना ने उस सामाजिक मानसिकता पर प्रहार किया, जो स्त्रियों को मौन सहन की प्रतिमूर्ति बनाना चाहती है। डॉ. मुक्ति कहती हैं, “साहित्य समाज का सच्चा आईना है। मैं उन आवाज़ों को स्वर देती हूँ, जो पर्दों के पीछे दबी रह जाती हैं।” यही संकल्प उन्हें लोक संस्कृति से जुड़े विषयों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पिरोने के लिए प्रेरित करता है।

उनका सफर इंदौर की गलियों से शुरू होकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा है, लेकिन जड़ें अब भी स्थानीय विरासत से गहराई से जुड़ी हैं। जब वे कविता पाठ करती हैं, तो लगता है मानो शब्दों के साथ संगीत बह रहा हो। उनकी उपलब्धियाँ न सिर्फ उनके व्यक्तित्व, बल्कि सम्पूर्ण साहित्य जगत के लिए प्रेरणा हैं।

अब साहित्यप्रेमी उनकी अगली कृति की प्रतीक्षा में हैं। डॉ. मुक्ति की यह यात्रा साबित करती है कि साहित्य सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज को बदलने का हथियार भी है। इंदौर की यह साहित्यिक धरोहर आज भी नए विमर्श गढ़ने में जुटी है, और उनकी हर पंक्ति इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखी जा रही है…

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