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रंग दे कलम

रंग दे कलम

विषय-होली/फाग

मन के भेद पिया संग खोले,चोरी चोरी नैना बोले।

झूम झूम कर तन मन डोले,प्रेम रंग में अंग भिगो ले।।

मन में तेरी याद संजोली,आया फागुन लेकर होली।

फागुन की फागें सब गाओ, मस्ती छाई ढोल बजाओ।।

 

मीठी भांग पिलाती गौरा, आम हरा हर डाली बौरा।

रंग फुहारें अब बरसाती, राधा देखो अब शरमाती।।

होली में सब द्वेष भुलाओ, सब मिल कर अब धूम मचाओ।

मीठी क़ुल्फ़ी भांग खिलाओ, गोरी अब यूँ मत शरमाओ।।

 

फागुन गीतों का धुन गाएँ, सबके दिल में रस-बस जाएँ।

मैं कृष्णा बन खेलूँ होरी, तू राधा बन कर बरजोरी।।

थामूँ बहियाँ जो मैं तेरी, बन जाना तू गोरी मेरी।

तू साजन मैं तेरी गोरी, तू चातक मैं चन्द्र चकोरी।।

 

चुपके-चुपके जाना गोरी, वरना अब होगी बरजोरी।

प्रीत लगन है मुझको प्यारी, टूटे ना साँसों की डोरी।।

चोरी-चोरी ढूँढे राधा, प्रेम भरा जीवन है साधा।

बरसाने की पावन होली, सखियाँ बनती हैं हमजोली।।

 

अंजलि किशोर बरनवाल

शंकरपुर मोर,शारदापल्ली-१

पश्चिम बंगाल(उखरा)

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