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मन पूछे कई बार, कैसा होता है पतझड़-बहार

*मन पूछे कई बार, कैसा होता है पतझड़-बहार*  

 

मन पूछे कई बार, कैसा होता है पतझड़-बहार,

कुछ पल का सिंगार, फिर बिखरते रंग हजार।

 

फूलों की मुस्कान, फिर पत्तों का बिखर जाना,

साथ चले जो सदा, उनका यों रूठकर जाना।

 

धूप संग खिली शाखें, फिर छाँव भी गुमसुम हुई,

कलियाँ जो महकी थीं, अब ख़ामोशियों में रहीं।

 

पतझड़ की तन्हाई में, बहारों की यादें हैं,

उम्मीद की कुछ किरणें, बिखरी हुई राहें हैं।

 

 

दर्द भी है, सुकून भी, मौसम की है ये रीत,

पतझड़ की बाहों में ही, बहारों की है जीत।

 

ज्योती राठौड़

विशाखापट्टनम(आंध्र प्रदेश)

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