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विदेश में भी अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं स्वामी रामभद्राचार्य

विदेश में भी अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं स्वामी रामभद्राचार्य, 

धार्मिक क्षेत्र के साथ सामाजिक कार्यों में भी गहरी रुचि 

अद्वैत दशरथ तिवारी 

प्रतापगढ़।जौनपुर के शांडी खुर्द सांचीपुरम गांव के पंडित गिरधर मिश्रा के पुत्र स्वामी रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को हुआ। दो माह की आयु में ही उनकी आंखों की रोशनी ट्रेकोमा बीमारी के चलते चली गई।घर के लोगों ने काफी इलाज करवाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। दो महीने की उम्र से आंखों की रोशनी चले जाने के बाद घर के लोगों को उनके आगे के जीवन के लिए काफी चिंता होने लगी । पांच वर्ष की उम्र में गिरधर रामभद्राचार्य ने अपने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा की मदद से 15 दिनों में धर्म के क्षेत्र में अध्याय और श्लोक संख्याओं के लगभग 7 00छंदों वाली पूरी भागवत गीता को याद किया। 1955 में जन्माष्टमी के दिन उन्होंने भागवत गीता का पाठ किया । सात वर्ष की आयु में अपने दादा की सहायता से 60 दिनों में तुलसीदास के पूरे रामचरितमानस को याद किया । वेद, उपनिषद, संस्कृत, व्याकरण, भागवत पुराण, तुलसीदास की सभी कृतियों व भारतीय साहित्य की अनेक कृतियों को याद करने का उनका सिलसिला चलता रहा ।शुरुआती दौर उनके लिए बड़ा कठिन रहा उनकी आंखों की ज्योती चले जाने की वजह से कभी-कभी उन्हें आहत भी होना पड़ा। मानवता मेरा मंदिर है और मैं उसका पुजारी हूं, विकलांग मेरे सर्वोच्च भगवान है और मैं उनकी कृपा का साधक हूं। यह शब्द उनके अंतरमन की व्यथा को उद्गृत करते हैं। चित्रकूट में संत तुलसीदास के नाम पर एक धार्मिक एवं सामाजिक सेवा संस्थान तुलसी पीठ की स्थापना की चित्रकूट में जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की इसके वह संस्थापक है ।धार्मिक ग्रंथो के प्रति लगाव और उनके निष्ठा का कार्यक्रम जारी रहा और धीरे-धीरे उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त हो गया ।19 नवंबर 1983 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामचरण दास फलाहारी महाराज से उन्होंने रामानंद संप्रदाय बैरागी की दीक्षा ली और वैराग्य पूर्ण जीवन बिताने का संकल्प लिया ।1987 में उन्होंने तुलसी पीठ की स्थापना की और वहां पर एक भव्य कांच का मंदिर चित्रकूट में स्थापित किया। 24 जून 1988 को उन्हें जगतगुरु रामानंदाचार्य पद से विभूषित किया गया ।3 फरवरी 1989 को प्रयागराज कुंभ मेला के जगतगुरु के रूप में भी उन्हें प्रतिष्ठा प्राप्त हुई ।जुलाई 2003 में राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद प्रकरण में उनकी गवाही ने उनकी विद्वता और उनकी क्षमता को पूरे देश में जाहिर किया ।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इनकी पहचान है। इंडोनेशिया, इंग्लैंड, मॉरीशस, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका में इन्होंने धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार किया ।मिलेनियम विश्व शांति शिखर सम्मेलन में में भी उन्होंने धर्म, आध्यात्मिक और समाज कल्याण का वर्णन किया ।प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, मुरली मनोहर जोशी, नानाजी देशमुख, के श्रीनाथ, त्रिपाठी, एपीजे अब्दुल कलाम, शिवराज पाटिल ,सोमनाथ चटर्जी, सहित तमाम विशिष्ट लोगों ने उन्हें देश का अद्भुत रत्न बताया ।उनकी बुद्धिमत्ता और स्मृति की सराहना की। वर्ष 2014 में स्वच्छ भारत मिशन के नामित सदस्यों में भी उन्हें चुना गया ।अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर उन्हें अतिथि के रूप में नामित किया गया ।उन्होंने तुलसीदास के रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, हिंदी टीका, संस्कृत व्याकरण ,न्याय, वेदांत क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का डंका बजाया । रामायण भागवत के कथाकार है ।भारत के साथ विदेश में भी उनके कार्यक्रम विभिन्न टीवी चैनलों पर चलते हैं। रामचरितमानस का समालोचनात्मक संस्करण, 84 कोसी यात्रा में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा । 22 भाषाएं बोल सकते हैं। रामानंदी संप्रदाय के रामभद्राचार्य जी राघव कृपाभाष्य, गीता रामायण, श्री सीताराम, सुप्रभातम, व अन्य तमाम ग्रंथ को उन्होंने अपने ज्ञान से लिखा। वेद, उपनिषद, संस्कृत, व्याकरण, भागवत पुराण, तुलसीदास की सभी कृतियां और साहित्य का उन्हें ज्ञान है। उनकी अनेक कृतियां धर्म के क्षेत्र में अपनी एक अमिट छाप छोड़ रही है। वर्ष 2015 में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में दिव्यांग डिग्री कालेज के साथ अन्य धर्मार्थ कार्य के लिए जाना जाता है। चित्रकूट में सेवा मिशन के तहत गरीब बेटियों की शादी शिक्षा के लिए भी मदद की जाती है। इस दौरान प्रतापगढ़ जनपद के पट्टी तहसील क्षेत्र के रामपुर खागल गांव में कथा के दौरान रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी रामचंद्र दास (जय ) भी चर्चा में आए हैं।

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