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सनातन धर्म में करवा चौथ, स्त्री महिलाओं के तप त्याग तपस्या व समर्पण पतिव्रता का त्यौहार है

सनातन धर्म में करवा चौथ, स्त्री महिलाओं के तप त्याग तपस्या व समर्पण पतिव्रता का त्यौहार है ।

      लेखक वरिष्ठ पत्रकार संतोष गंगेले कर्मयोगी 

सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत अनादि काल से चल रहा है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को विभिन्न रूपों में विभिन्न कथाओं के जरिए भारतीय संस्कृति संस्कारों में भारत की पूजनीय वंदनीय है महिलाओं स्त्रियों के समर्पण त्याग तपस्या और पतिव्रता का त्यौहार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । जिस प्रकार से भगवान शिव शंकर की धर्मपत्नी अर्धांगिनी माता गौरी पार्वती द्वारा तीज व्रत अनादि काल से प्रचलित है उसी का यह दूसरा रूप करवा चौथ व्रत भी इस प्रकार से पावन पवित्र त्यौहार माना गया है । माता गौरी पार्वती द्वारा भी अपने पति की दीर्घायु और संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखा गया था ।

सनातन संस्कृति में लोक कथाओं में भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का सम्मान अनादि काल से रहा है इस कारण महिलाओं के और बेटियों के सम्मान में भारत का सनातन धर्म बचाने में महत्वपूर्ण त्याग और तपस्या है ।

भारत की पावन पवित्र व्रत करवा चौथ सतयुग में कथा के रूप में आता है कि जब राक्षसों का आतंक बढ़ गया राक्षसों द्वारा नरसंहार गौ माता और ब्राह्मणों का वध किया जा रहा था उसे समय भगवान श्री विष्णु ने सभी देवताओं से राक्षसों से संघर्ष करने के लिए प्रेरणा दी सृष्टि के संचालन करता ब्रह्मा ने देवताओं की धर्मपत्नियों से कहा कि वह है अपने पति की दीर्घायु और युद्ध में विजय के लिए कार्तिक मार्च की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत प्रात काल से निर्जला रेखा शुरू करें। यही व्रत करवा चौथ व्रत था ।

निर्मल मन से परमपिता परमेश्वर भगवान शिव की आराधना करें और श्री गणेश जी की वंदना करते हुए व्रत को शुरू करें राक्षसों का संहार वध होगा देवताओं की विजय होगी । देवताओं की पत्नियों ने कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया और उनके पति विजय हुए । यही से लेकर के करवा चौथ व्रत शुरू हुआ । राक्षसों का नाश किया गया देवताओं की विजय हुई । सतयुग में माता लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना और सम्मान देता युग में माता जानकी जी सीता जी का सम्मान द्वापर में श्री राधा रानी श्री रुक्मणी जी का सम्मान और कलयुग में अनेक ऐसी पतिव्रता नारियों जिन्होंने अपने पति की मौत को काल के गाल से बचा लिया इसलिए महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु परिवार की सुख शांति एवं सामंजस के लिए समय-समय पर उपवास व्रत या भवन पूजन साधना उपासना करती आ रही हैं और उसी के फल स्वरुप करवा चौथ का व्रत भी नारियों के सौभाग्यवती होने का प्रतीक है ।

पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख आता है कि त्रेता युग में नदी किनारे कपड़ा धोने वाले पति-पत्नी भगवान का भजन करते हुए अपने काम कर रहे थे और कपड़ा धोने वाले व्यक्ति का पैर नदी में डूबा हुआ था तभी मगरमच्छ ने उसे व्यक्ति का पैर अपने मुंह में दवा लिया, कपड़ा धोने वाले व्यक्ति को नदी में खींचने लगा धर्मपत्नी ने पति का हाथ पकड़ के भगवान को चिल्लाना शुरू किया और कहा कि मैं एक पतिव्रता नारी हूं अपने पति के प्रति समर्पण और मन से पवित्र होकर पतिव्रता रखती हूं मेरे पति को मौत से बचाओ । आज कार्तिक मास की चतुर्थी का दिन है अभी निर्जला हूं उपवास किया हूं मेरे पति की रक्षा करो ईश्वर ने उसके पति की रक्षा करने के लिए अदृश्य अपनी शक्ति का प्रभाव से मगरमच्छ को भगा दिया और उसका पति बच गया उसके पैर में भी किसी तरह का कोई निशान नहीं था उसको ईश्वर पर अद्भुत भरोसा श्रद्धा विश्वास और भक्ति हुई और उसने संध्या के समय चंद्रमा को ईश्वर मानकर विधि विधान से पूजा करते हुए पति की पूजा की वहीं से करवा चौथ व्रत कथा का शुभारंभ बताया जाता है ।

भारत की मातृ शक्तियों का सर्वोच्च स्थान दिलाने वाली सती अनसूया एवं सती सावित्री पतिव्रता के अनेक उदाहरण इतिहास में वेद पुराण शास्त्रों कथा में पाए जाते हैं ।

करवा चौथ व्रत बेटियां और पुरुष भी रख सकते हैं 

हमारे वेद पुराण शास्त्रों उपनिषद धार्मिक ग्रंथो अनेक धार्मिक पुस्तक लोक कथाओं भक्त माल धार्मिक कथाओं,धार्मिक अनेक ऐसे संत महात्मा पुरुषों के द्वारा अपने-अपने तरीके से मां सरस्वती की कृपा से धर्म की रक्षा करने के लिए तथा सनातन संस्कृति बचाने संस्कारों को जीवित करने तथा परिवारों में सुमित सुख शांति समृद्धि के लिए महिलाओं के सम्मान बेटियों के पद पूजन कन्यादान कन्यादान गौ दान विद्या दान शिक्षा दान धन-धान्य दान के अनेक पायदान बताए गए हैं जब पुरुष और नारी शक्ति दो आत्मा वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हैं यज्ञ हवन पूजन अग्नि को साक्षी मानकर अनुष्ठान के साथ संकल्प लेते हैं 7-5 बचनों को मंडप के नीचे स्वीकार करते हैं उसी दिन से घर में परिवार में प्राकृतिक ऊर्जा और शक्ति साधन संपन्न सुख शांति का अनुभव होता है । पति पत्नी एक नए संकल्प के साथ वैवाहिक जीवन की पहले रात्रि से नए जीवन की शुरुआत करते हैं एक दूसरे की पहचान परिचय आत्माओं का मिलन और व्यवहारिक जीवन नए संकल्प के साथ शुरू होता है इसी का नाम परिवार और रिश्ते कहलाते हैं । पति-पत्नी के रिश्ते ईश्वर की तरह श्रद्धा विश्वास और भक्ति से चलते हैं इसलिए जीवन में पति-पत्नी को वैवाहिक जीवन के बाद किसी भी तरह से पवित्रता नष्ट ना हो पति-पत्नी को ध्यान रखना चाहिए ।

करवा चौथ का व्रत प्रति वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाने का जो सनातन धर्म में पर्व त्यौहार आता है वह जीवन की नई शुरुआत और पति-पत्नी की भावनाएं आपसे मनमुटाव मन आत्मा के संदेह एक दूसरे की बुराइयां दूर कर नया जीवन का त्यौहार होता है इस दिन महिलाएं 16 सिंगार करके निर्जला उपवास करती हैं और भगवान शिव पार्वती श्री गणेश जी की आराधना पूजा करके चांद के दर्शन करने के बाद पति के दर्शन कर पति के हाथ से शुद्ध जल पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं उसके बाद परिवार के साथ भोजन लेकर पति-पत्नी अपने जीवन में नई उमंग उत्साह शीतलता आत्माओं की तरंगों को ईश्वर का वरदान मानकर दोनों आत्माओं का मिलन होता है ।पति-पत्नी के मिलन आत्माओं के मिलन के बाद यदि संतान उत्पत्ति का संकल्प व्रत के साथ लिया जाए ऐसी संताने भारत की सनातन धर्म की रक्षा धर्म की रक्षा देश और राष्ट्र की रक्षा बुद्धिमान बलवान शक्तिमान साहसी धैर्य वन करुणा दया प्रेम के साथ माता-पिता गुरु की आज्ञाकारी संतान होती है ।

प्रत्येक भारत की महिलाओं को करवा चौथ का व्रत रखने के लिए मन में सबसे पहले छल कपट अहंकार का त्याग करके निर्मलता, पवित्रता को स्थान देना चाहिए अपने मन कर्मा और वाणी से जो भी अपराध हुए हो उन्हें क्षमा करने का त्योहार भी माना गया है इसी प्रकार से पति को भी अपनी पत्नी की भावनाओं को स्वस्थ जीवन पवित्र जीवन और परिवार को संचालन करने के लिए पत्नी की भावनाओं को समझ कर साधारण उपवास जल व कुछ उपवास आहार लेकर पति के साथ व्रत रखने का भी पावन पवित्र त्यौहार है पत्नी के लिए इस अवसर पर श्रृंगार का सामान और नए वस्त्र पति द्वारा पत्नी को प्रदान करना चाहिए इस त्यौहार को जीवन की शादी की पहली रात के सुहागरात के रूप में ही मनाया और देखा जाता है ।

करवा चौथ का व्रत की पूजा विधि विधान से कथा सुनने के बाद आरती के बाद कर्मकांडी ब्राह्मण या फिर परिवार में शिक्षित और बुद्धिमान व्यक्ति से जो करवा चौथ व्रत की विधि है उसे पुस्तक के माध्यम से घर-घर पूजा होती है और उसी प्रकार से होना चाहिए ।

वैज्ञानिक आधार भी उपवास व्रत संयम और साधना को ऊर्जा की शक्ति ऊर्जा का प्रकाश पुंज मानता है वैज्ञानिक तौर पर जब कोई भी मनुष्य जीव जंतु भोजन त्याग देता है तो उसकी इंद्रियां और शरीर में मल गंदगी होती है वह बाहर निकल जाता है , वह नष्ट होकर अपने रास्ते निकल जाता है इसलिए उपवास व्रत की साधना से मनुष्य को स्वस्थ रहने का सबसे अच्छा तरीका बताया गया है ।

करवा चौथ व्रत कथा हमारी सनातन संस्कृति की परंपरा पर त्यौहार है इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए पति-पत्नी के बीच किसी भी तरह के संदेह के रिश्ते नहीं होना चाहिए महान से महान भूल और गलतियों को क्षमा करने का भी यह करवा चौथ व्रत सबसे पावन पवित्र त्योहार माना जाता है । भारत सहित संपूर्ण विश्व में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है इससे कहीं ना कहीं कोई गलती अपराध भूल न होती हो इसलिए क्षमा कर देना ही सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार और साहस का काम है ।

लेखक संतोष गंगेले कर्मयोगी नौगांव बुंदेलखंड जिला छतरपुर मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9893 196874

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